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वक्त गर साथ देता
वक्त गर साथ देता
फिर गमे-सौगात
कहां मिली होती किसी को
ना दूजे की असलियत का
एहसास होता कभी
ना लोग खुद की गलतियों का
सारा बोझ किसी दूजे के
माथे मढ खुद शरीफ बने रहते
ना किसी नाकामी के तले दबे रहते
ना किसी दूसरे की सुननी पड़ती
ये जिंदगी तो वक्त का ही खेल है
ये वक्त जिसका साथ दे वही सिकंदर
वरना क्या औकात किसी की
© Anjali Singh
फिर गमे-सौगात
कहां मिली होती किसी को
ना दूजे की असलियत का
एहसास होता कभी
ना लोग खुद की गलतियों का
सारा बोझ किसी दूजे के
माथे मढ खुद शरीफ बने रहते
ना किसी नाकामी के तले दबे रहते
ना किसी दूसरे की सुननी पड़ती
ये जिंदगी तो वक्त का ही खेल है
ये वक्त जिसका साथ दे वही सिकंदर
वरना क्या औकात किसी की
© Anjali Singh
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