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कविता: एक रहस्य
एक बात कहूं! खफ़ा क्यूं हैं आप लोग कि मैंने कविताएं लिखकर भी सच छिपाया..
कुछ भाव तो अनकहे रह ही जाते हैं,कुछ उलझनों को हमने कभी किसी को न बताया...

पर हमने कभी झूठ तो नहीं कहा है किसी से,अपनी सीमा में संभव हर भाव जताया...
हां! ये दुःख की बात है कि एहसास करके मुझे समझने वाला कभी कोई न आया..

मैंने देखा है लोगों की प्रतिक्रिया को, जब जब भी मैंने उन्हें हाल ए दिल था सुनाया...
उनकी आंखों में मेरे लिए दर्द या चेहरे पर मेरे लिए कोई भी एहसास नज़र न आया...

दुःख बहुत हुआ कि जिन्हें अपना समझा,उनके दिल में अपने लिए अपनापन न पाया..
फिर भी रखा अपना यही स्वभाव,कभी जानबूझकर किसी का हमने दिल न दुःखाया...

हर बार.. हर बार जाने कैसे, हर रिश्ते में बिना किसी वजह के भी मैंने बदलाव ही पाया..
हर बार टटती रही कि जब यही होना था, तो क्यूं मैंने इस रिश्ते में इतना लगाव ही पाया..

अंततः,कुछ लोगों के बदलाव को वक्त के साथ स्वीकार करने का साहस भी जुटाया...
पर फिर भी कुछ लोगों को *ख़ास से आम* समझने का हुनर हमें आज भी न आया...

बस कोशिश की कि सामान्य दिख सकूं,बेशक हर लम्हे का एहसास है दिल में समाया..
शर्मिंदा भी होती हूं कि आख़िर क्यूं मैंने उन सबसे बीते हुए लम्हों को बार बार दोहराया..

पर क्या करूं...जितना ज्यादा याद आया कोई,उतना दिल में जज्बातों का तूफ़ान आया..
शायद बहुत कमज़ोर है दिल,इन तूफानों को ख़ामोश रहकर अकेले सह ही नहीं पाया..

फिर शर्मिंदगी के एहसास ने,जज्बातों को अकेले ही संभालने का एहसास कराया..
मैंने भी ख़ामोश रहकर वास्तविक स्थिति को स्वीकारने के लिए ख़ुद को बहुत समझाया..🥺

पर उस जज़्बात का क्या,जिसे एक पल के लिए भी ये दिल चाहकर भी न भूल पाया..
अकसर सवाल कर लेती हूं भगवान से कि आख़िर क्यूं उन्होंने मुझको ऐसा है बनाया..🧐😐🙂
;;;;। --shivi...✍️



© Shivani Srivastava