कविता: एक रहस्य
एक बात कहूं! खफ़ा क्यूं हैं आप लोग कि मैंने कविताएं लिखकर भी सच छिपाया..
कुछ भाव तो अनकहे रह ही जाते हैं,कुछ उलझनों को हमने कभी किसी को न बताया...
पर हमने कभी झूठ तो नहीं कहा है किसी से,अपनी सीमा में संभव हर भाव जताया...
हां! ये दुःख की बात है कि एहसास करके मुझे समझने वाला कभी कोई न आया..
मैंने देखा है लोगों की प्रतिक्रिया को, जब जब भी मैंने उन्हें हाल ए दिल था सुनाया...
उनकी आंखों में मेरे लिए दर्द या चेहरे पर मेरे लिए कोई भी एहसास नज़र न आया...
दुःख बहुत हुआ कि जिन्हें अपना समझा,उनके दिल में अपने लिए अपनापन न पाया..
फिर भी रखा अपना यही स्वभाव,कभी जानबूझकर किसी का हमने दिल न दुःखाया...
हर बार.. हर बार जाने कैसे, हर...
कुछ भाव तो अनकहे रह ही जाते हैं,कुछ उलझनों को हमने कभी किसी को न बताया...
पर हमने कभी झूठ तो नहीं कहा है किसी से,अपनी सीमा में संभव हर भाव जताया...
हां! ये दुःख की बात है कि एहसास करके मुझे समझने वाला कभी कोई न आया..
मैंने देखा है लोगों की प्रतिक्रिया को, जब जब भी मैंने उन्हें हाल ए दिल था सुनाया...
उनकी आंखों में मेरे लिए दर्द या चेहरे पर मेरे लिए कोई भी एहसास नज़र न आया...
दुःख बहुत हुआ कि जिन्हें अपना समझा,उनके दिल में अपने लिए अपनापन न पाया..
फिर भी रखा अपना यही स्वभाव,कभी जानबूझकर किसी का हमने दिल न दुःखाया...
हर बार.. हर बार जाने कैसे, हर...