जाते जाते
चलते चलते कैसे बीत गया साठ साल
युवा रूप में आया था अब गढ्ढे हैं गाल
दिन रात मे रात दिन में बदलते रहे
महीने साल में यूं ही ढलते रहे
अपनी धुन में चलते रहे अपनी चाल
चलते चलते........
कर्म को जीवन का आधार माना
घर परिवार office को संसार माना
देश हित में जब भी जरूरत पड़ी
कर्तव्य को...
युवा रूप में आया था अब गढ्ढे हैं गाल
दिन रात मे रात दिन में बदलते रहे
महीने साल में यूं ही ढलते रहे
अपनी धुन में चलते रहे अपनी चाल
चलते चलते........
कर्म को जीवन का आधार माना
घर परिवार office को संसार माना
देश हित में जब भी जरूरत पड़ी
कर्तव्य को...