...

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मैं ही गलत
जो भी करती हूं,
हो जाता गलत।
कितनी भी कोशिश करू,
गलतियों में ही होती बढ़त।

क्या मैं करू
जिससे मैं हो जाऊं अच्छी,
दुनिया से लूं
हर बार थपकी।

इरादा है सच्चा,
होती मेरी नेक सोच,
फिर क्यों होता ऐसा,
मिलती मायूसी की चोट।

देकर हौसला सबको
हर बार, क्या मिलता मुझको?
गलत करार देकर,
दफना देते मुझको।

कैसे उभरे कोई,
कैसे आत्मविश्वास जगे?
जब हर चीज़ में बस
मेरी ही गलती दिखे।

© Kshitija D.

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