...

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मानव: एक असाधारण यात्रा
मानव ?
सूर्य की रोशनी भी पड़ती है,
चाँद की चांदनी भी पड़ती है ।
मानव जीवन है ,
रेगिस्तान सी गर्मी भी झेलनी पडती है ,
और,
लद्दाख सी सर्द हवा भी ।
कभी जिंदगी मे सिर्फ उजाला ही उजाला ,
तो कभी अंधेरा भी देखना पड़ता है ।
कुछ सीखने के लिए जिंदगी मे ,
गिरना भी पड़ता है ।
चलते रहे आगे बढ़ते रहे ,
रास्ता बिना काटो का हो?
नहीं, ये मुमकिन नहीं,
प्राप्त मंज़िल आसानी से हो?
नहीं ये सम्भव नहीं।
परिश्रम है ,
तो मंज़िल है ,
मानव सही राह पर है ,
तो हर चीज़ सम्भव है ।
वो मानव है ,
गलती करेगा,गिरेगा, उठेगा ,
तो उन गलतियों के सबक से बनेगा ।
परंतु ,
वही मानव है ,
गलती करेगा,गिरेगा,उठेगा,
फिर गलती करेगा,फिर गिरेगा,
वो सबक नहीं लेगा ,और अपने अस्तित्व की अहमियत मिटा देगा।
© SAARA