...

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मुझे नही पता
मुझे नही पता मै कैसे और क्या?
लिखूंगी , पर एक बात कहूं कोशिश
जरूर करूंगी , लोग कहते हैं
देखा तुमको तुम नादान लगी,
जैसे खुली किताब लगी , पर जब
तुम्हे समझा तो पाया तुमने ना
जाने कितना कुछ खुद मे छुपाए
रखा है, जैसे सागर ने खुद मे
लहरों को बसाए रखा है .........
आज ही की बात है , उसे मेरी
बातो मे गहराई लगी, जो अब
तक सबको बचकानी सी लगती
थी । दिन भर खिखिलाती
रहती वो फूलो की तरह, किसी
को उसके चेहरे पर एक भी सिकंज
कहा दिखती थी ......
पर आईने के सामने जब वो बैठा
करती तो बया हो जाता उसका
दर्द सारी दुनिया से तो छुप कर
अपने जज़्बात रख लिया करती
थी पर खुद से खुद ही वो कहा?
छुप सकती थीं .........❤️।


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