...

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सौ बार हार कर भी, ना हार मान पाऊं
सौ बार हार कर भी, ना हार मान पाऊं
बदले में चाहे सारी, सांसें मिटा कर जाऊं

बांधे हैं जो भी ताले, किस्मत ने जंजीरों से
तोड़ने हैं उन सबको, अंदर छिपे हौसलों से

पिंजरे में नहीं, सारा जीवन बिता पाऊं

आईने में देख खुद को, कुछ तो कह पाऊं
सौ बार हार कर भी, ना हार मान पाऊं

जोर थोड़ा लगा लूं और, जोर थोड़ा लगा लूं और
जोर तो लगा लूं मैं, जोर थोड़ा लगा लूं और

माना शब्दों में अपने, अभी ना कोई सुर है
बेडंगा बेडंगा हूं, हर सरगम मेरा बेरंग है
पर कोशिशें के पन्नों पर, लिखूं मैं कहानी
अधूरी ही सही पर, पसीनो की जुबानी

बिस्तरों पर मलमल के, कि नहीं होता अब गुजारा
मंजिलों की प्यास लिए मैं, घूमूं जग सारा

तराशे बिना नहीं खुद को, अब मैं चैन पाऊं

रस्ते हैं लंबे-लंबे, रोज कदम फिर भी बढ़ाऊं
सौ बार हार कर भी, ना हार मान पाऊं

जोर थोड़ा लगा लूं और, जोर थोड़ा लगा लूं और
जोर तो लगा लूं मैं, जोर थोड़ा लगा लूं और

जिम्मेदारियां है लंबी, सीखने की ख्वाहिशें लंबी
वक्त है कम, फिर भी कुछ तो कर जाऊं
सौ बार हार कर भी, ना हार मान पाऊं

© Ashutosh Kumar Upadhyay