“दिल श्मशान तो नही है"
सितमगर की बेख्याली से दिल, अनजान तो नहीं है,
क्या सचमे है जान उसमे, कहीं बेजान तो नहीं है,,
इक झलक की खातिर, हो रहा हूं, खार बहुत,
जिल्लत ही है मुकद्दर मेरे, कोई शान तो नहीं है,,
फकत चैन ही तो है, जो है जिंदगी से गुम,
वरना होठों को सिगरेट से, कोई नुकसान तो नहीं है,,
है सीने में, दहक रही, हमदम तेरी बेहूदगी,
फिर सुकुन क्यों है जल रहा, दिल शमशान तो नहीं है।....
© Kapil saini
क्या सचमे है जान उसमे, कहीं बेजान तो नहीं है,,
इक झलक की खातिर, हो रहा हूं, खार बहुत,
जिल्लत ही है मुकद्दर मेरे, कोई शान तो नहीं है,,
फकत चैन ही तो है, जो है जिंदगी से गुम,
वरना होठों को सिगरेट से, कोई नुकसान तो नहीं है,,
है सीने में, दहक रही, हमदम तेरी बेहूदगी,
फिर सुकुन क्यों है जल रहा, दिल शमशान तो नहीं है।....
© Kapil saini
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