“दिल श्मशान तो नही है"
सितमगर की बेख्याली से दिल, अनजान तो नहीं है,
क्या सचमे है जान उसमे, कहीं बेजान तो नहीं है,,
इक झलक की खातिर, हो रहा हूं, खार बहुत,
जिल्लत ही है...
क्या सचमे है जान उसमे, कहीं बेजान तो नहीं है,,
इक झलक की खातिर, हो रहा हूं, खार बहुत,
जिल्लत ही है...