महादेव ✍🏻✍🏻✍🏻
शिव नहीं हैं दृष्टिगोचर फिर भी सब पर दृष्टि है !
तुम धरा के करता धरता तुमसे रचित ये सृस्टि है !
केश गंगा से सुशोभित नेत्र अग्नि से सुशोभित !
तीनो लोकों की सकल ऊर्जा से हैं महादेव रोपित !
हैं बिना बोले सहारे जो हैं दुखी और दीन शोषित !
जिनके चरणों को पखारे स्वयं रज पावन धरा की !
दया दृष्टि है जो उनकी तो है चिंता क्यों ज़रा भी !
मृत्यु से सर्वोपरि हैं...
तुम धरा के करता धरता तुमसे रचित ये सृस्टि है !
केश गंगा से सुशोभित नेत्र अग्नि से सुशोभित !
तीनो लोकों की सकल ऊर्जा से हैं महादेव रोपित !
हैं बिना बोले सहारे जो हैं दुखी और दीन शोषित !
जिनके चरणों को पखारे स्वयं रज पावन धरा की !
दया दृष्टि है जो उनकी तो है चिंता क्यों ज़रा भी !
मृत्यु से सर्वोपरि हैं...