अंतरद्वंद
एक तरफ थे अपने परिजन
एक तरफ रण था ।
अंतर्द्वंद में घिरा हुआ
पार्थ का अंतर्मन था !
नीर चक्षुओं में सजल हुए
जड़वत हो गए शस्त्र सारे।
पैरों में बेड़ियां थीं अपनों की
बेबस थे...धनुर्धर बेचारे !
अंतर्द्वंद से जूझता मन
आखिर कैसे...
एक तरफ रण था ।
अंतर्द्वंद में घिरा हुआ
पार्थ का अंतर्मन था !
नीर चक्षुओं में सजल हुए
जड़वत हो गए शस्त्र सारे।
पैरों में बेड़ियां थीं अपनों की
बेबस थे...धनुर्धर बेचारे !
अंतर्द्वंद से जूझता मन
आखिर कैसे...