स्वेच्छा से..
रोज़ सुबह
सजती सँवरती है प्रकृति
स्वेच्छा से..
बिन पूछे बिन कहे
किसी को रिझाने को नहीं,
बल्कि शृंगार
आभूषण है उसका..
स्वयं को अलंकृत करना
प्रवृत्ति है उसकी
ठीक उसी प्रकार
सजती सँवरती है एक स्त्री
रोज़
स्वेच्छा से..
केवल
स्वयं के लिए....!!
© bindu
सजती सँवरती है प्रकृति
स्वेच्छा से..
बिन पूछे बिन कहे
किसी को रिझाने को नहीं,
बल्कि शृंगार
आभूषण है उसका..
स्वयं को अलंकृत करना
प्रवृत्ति है उसकी
ठीक उसी प्रकार
सजती सँवरती है एक स्त्री
रोज़
स्वेच्छा से..
केवल
स्वयं के लिए....!!
© bindu