...

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ईश्वर या अल्लाह
कोई कहता तू ईश्वर है,
कोई कहता तू अल्लाह है।
कोई पड़ता नमाजे शुक्र ,
कोई गीता को पड़ता है ।
बनाया एक ही रब ने, तो क्यों ये भेद करते हो।
कोई माने जो अकबर को, कोई भगवत को गाता है ।
कोई कहता तू ईश्वर है,
कोई कहता तू अल्लाह है।
कोई पड़ता नमाजे शुक्र ,
कोई गीता को पड़ता है ।
कि तूने रक्त नहीं देखा, कि तूने प्राण नहीं देखा।
कि जीवन की लकीरों से ,तूने धर्म नहीं खींचा।
किसी ने हाथ हैं जोड़े, कोई माथा टिकाता है।
कोई मंदिर में जाता है, कोई मस्जिद में जाता है ।
ना मैं हिंदु , न में मुस्लिम,में एक हिंदुस्तानी हु ।
कोई पढ़ ना सके मुझको, में एक ऐसी कहानी हूं।
ना कोई धर्म दिखता है, ना कोई प्रांत दिखता है।
न मुझको रहीम दिखता है, ना कहीं राम दिखता है ।
मेरे अल्लाह, मेरे इश्वर , मेरे दिल में बसते हैं ।
यही नारा मेरा मुझको फरिश्तों से मिलाता है ।
कोई कहता तू ईश्वर है,
कोई कहता तू अल्लाह है।
कोई पड़ता नवाजे शुक्र,
कोई गीता को पड़ता है।।