...

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परित्राण्य
कलाई रंगधाग से लिपटी हुई, हथेली में बनाई नई चाल है
लड्डू चोरी का है अभियोग,उसकी सुरक्षा का बड़ा भार है
हसी पहुंच ही जाती,लड़ाई झगड़ा ये तो रोज का मेहमान है
नसीब नहीं है,खोटिस बनना नहीं,सत्य का भी,परित्राण्य है

वो बातों पर टोकना,पापविचार अभेट हो,हराहो पर रोकना
जिसकी हिस्सेदारी भी नाहो,जानकर, पेट काटकर घोटना
जिसकी डोली उठ जाती घर से,फिर शायद करती लौटना
गैर रिश्तेदार,अपने भी हो जाते,जब तक अलग करे मौतना

शक्ल तो एक जैसी ही है,कुछ समय ने दो घर में बदल दिए
जो राखी रात बिताती एक छत तले,अब वो छत बदल दिए
वेशभूषा बदली, सिरपे घूंघट,नामों के आगे कुछ बदलाव है
घर में अभी भी है घाम,लेकिन वो कहीं और पेड़ का छाव है

विदाई का दिन, में सेह पाऊंगा??आंखो का पानी जवाब है
दुख है जाने का,पर सबूर है,तुझे खुश देखना मेरा ख्वाब है
बारात लाना,डोली उठाना,विदाई कराना,जग में सामान्य है
नसीब नहीं है,खोटिस बनना नहीं,सत्य का भी,परित्राण्य है
© ADITYA PANDEY©