मन का दरवाज़ा
#छिपेविचार
कौन लगा सकता है कुंडी बताओ
बस यूं ही मेरे मन के दरवाज़े पर,
कोई काम नहीं मन को बस यूँ ही
शोर करे बिन मतलब दिन रात भर;
कितनी कोशिश करें चुप कराने की
बिना जुबां हिलाय, है ये बातों का घर,
चोरी-चोरी दबे पाँव कब कोई विचार
हल्ला बोले फिर भी दाख़िल हो कर;
कौन बना देता है मन को बेधड़क
कभी बचकानी कभी बातेँ कड़क,
मन में क्या नहीं होता दिल धड़क
जिंदगी हर मोड़ पर करे बेड़ा गर्क;
खेल मिट्टी में मिला दे ज़िन्दगी का
मन का कुछ नहीं...
कौन लगा सकता है कुंडी बताओ
बस यूं ही मेरे मन के दरवाज़े पर,
कोई काम नहीं मन को बस यूँ ही
शोर करे बिन मतलब दिन रात भर;
कितनी कोशिश करें चुप कराने की
बिना जुबां हिलाय, है ये बातों का घर,
चोरी-चोरी दबे पाँव कब कोई विचार
हल्ला बोले फिर भी दाख़िल हो कर;
कौन बना देता है मन को बेधड़क
कभी बचकानी कभी बातेँ कड़क,
मन में क्या नहीं होता दिल धड़क
जिंदगी हर मोड़ पर करे बेड़ा गर्क;
खेल मिट्टी में मिला दे ज़िन्दगी का
मन का कुछ नहीं...