...

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एक कली....
एक सरल सी एक कहानी थी,
एक कली के दिल की जुबानी थी।
सपने जिसने पिरोए थे ,
महकेगी ख्वाब सजोए थे।
मां – बाप बने जो डाली तने
हर मौसम वो थे साथ खड़े।
चली थी उनके सिद्धांतों पर
महक चहक रहूंगी हर रंगों पर।
कोमलता – सुंदरता होगी मेरी पहचान
जिसपे सजू बन जाऊ उसका सम्मान
क्या सिख मुझे मिली ये देखो
महकते चहकते भूली मैं खुदको
भूली मेरा भी सम्मान अभिमान है
क्यू मैं ही बिखरू ?मेरी भी जान है
महक जहां मेरी घटी तो
धूतकारी फिर मैं जाती हूं
डाली तने से जो छूटी तो
पराई ही बस रह जाती हूं
खुशबू बाटने मैं चली थी
अब खुदकी ही महक मैं खो चुकी
रंगो भरे जो सपने मेरे
बेरंग कहीं मुर्झो चुकी
सुंदर कली मैं फूल कहीं थी
अब बस बहता पानी हूं
पहचान बनाकर सजाकर सबकी
खुद बेपहचान कहानी हूं.......