...

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लिखो न तुम.....
लिखो न अपने जज़्बात
जिन्हे तुम छुपा रहे हो,
लिखो न खट्टे मीठे
हालात जिन्हे तुम
छुपा रहे हो!
कबसे दिल की बात
दिल मे रख कर
तुम खुद ब खुद
घबरा रहे हो.!
लिखो न आते जाते
दिन रात,
जिन्हे तुम खुद मे
समेटे चलते जा रहे हो!
लिखो न अपनी हंसी
का राज जो गमों
को छुपा रही है और
तुम इसी बात पर
इतरा रहे हो!
लिखो न कहानी जिसमे
तुम हर रूप मे नज़र आओ,
कहानी के रंग रूप तुम
ही बन जाओ.
लिखो न वो अनुभव जिसे
जी कर जिंदगी हसीन बन
जाये, हैं कुछ पुराने दर्द उन्हें
ले कर जाये,
लिखो न तुम सारी भूलें
जिन्हें दोहराना न चाहो.
जिनके सबक मे कोई
गुनाह न करो.
लिखो न वो दर्द जो
अब भी याद है तुम्हे
साल भले बीत गए.
वक़्त गुजर भी गया मगर
लम्हें ठहर गए.
लिखो न तुम जिंदगी के
हर रंग को जिसे तुम
देख चुके हो..
लिखो न तुम क्या क्या
जिंदगी से ले चुके हो!!
लिखो...... न...... लिखो.....
© sangeeta ki diary