ग़ज़ल "यादों का ट्रैफ़िक"
नगर दिल का बिना तेरे बहुत वीरान रहता है
मेरा ही अक्स मुझसे आज कल अंजान रहता है
बहुत कोशिश की है मैंने बनूँ इंसान मैं भी नेक
निहाँ इस जिस्म में मेरे कोई शैतान रहता है
नहीं गिरते ख़िज़ाँ में भी ज़मीं पर शाख़...
मेरा ही अक्स मुझसे आज कल अंजान रहता है
बहुत कोशिश की है मैंने बनूँ इंसान मैं भी नेक
निहाँ इस जिस्म में मेरे कोई शैतान रहता है
नहीं गिरते ख़िज़ाँ में भी ज़मीं पर शाख़...