...

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"पीरियडस (माहवारी)"
बचपन में सुना था,
स्कूल पीरियडस के बारे में,
रखा जब पाँव,
बचपन से यौवन की दहलीज़ पर,
हुआ सामना, दर्दनाक एक और पीरियडस से,
दर्द, जो हर लड़की, हर महीने सहती हैं,
असहनीय पीड़ा में चुपचाप वो तड़पती हैं,
कुछ धर्म के ठेकेदारों को अपवित्र वो लगती हैं,
हो जाता हैं भगवान उनका दूषित,
जब पास से वो उनके गुजरती हैं,
कुदरत का भी खेल कितना अजीब हैं,
हर लड़की देखों कितनी तकलीफ में जो पलती हैं,
पीरियडस की इस दर्दनाक अग्नि में,
खामोश रहकर, देखो कितना वो तड़पती हैं,
समाज की संकीर्ण सोच को, चुपचाप वो सहती हैं,
असहनीय पीड़ा से "अजय", हर माह वो गुजरती हैं...
© अजय खेर