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मनाने लगी है
बन ख्वाब मेरे ज़हन में लहराने लगी है
जिस्म से मेरे खुशबू तेरी आने लगी है
ले के करवट मचले मेरे फिक्रो सुखन
तू अनफासों से रूह जलाने लगी है
करते रहे तर्क ए वफ़ा ज़माने से हम
तू चश्में आरिज़ से गम पहनाने लगी है
अख्तियार तो नही इश्क़ पर मेरा लेकिन
जिंदगी कुछ परेशान नज़र आने लगी है
तेरी पुरसिश,तेरे हुस्न की ठंडक लेकर
मेरी रूठी हुई नींदों को मनाने लगी है
© manish (मंज़र)
जिस्म से मेरे खुशबू तेरी आने लगी है
ले के करवट मचले मेरे फिक्रो सुखन
तू अनफासों से रूह जलाने लगी है
करते रहे तर्क ए वफ़ा ज़माने से हम
तू चश्में आरिज़ से गम पहनाने लगी है
अख्तियार तो नही इश्क़ पर मेरा लेकिन
जिंदगी कुछ परेशान नज़र आने लगी है
तेरी पुरसिश,तेरे हुस्न की ठंडक लेकर
मेरी रूठी हुई नींदों को मनाने लगी है
© manish (मंज़र)
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