...

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सार
जिम्मेदारियाँ,
भाग-दौड़,
प्रतिस्पर्द्धा,
एक-दूजे
से आगे
निकलने
की होड़,
पारिवारिक
कर्त्तव्य
और रिश्तों
की मर्यादा
के बीच
पीसता
कश्मकश में
पड़ा यौवन,
ऊँचाई की
सीढ़ियां चढ़ता
इतना ऊपर
चला जाता है
कि शायद !
थक जाता है.....

इसीलिए शायद
ढूंढता है
शांति,
नीरवता,
अकेलापन
दूर
सबसे दूर
बहुत दूर
एकांत.....

क्या यही
जीवन का
सार है ?
क्या यही
जीवन है ?

© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey