...

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मेरे भी थे कुछ ख्वाब
मेरे भी थे कुछ ख्वाब,
पता ही नहीं चला कि ये थे ख्वाब,
पूरे कर तो दिए किस किसके ख्वाब,
ख्वाबों की भी मंजिलें होती हैं,
मेरे ख्वाब ने ही बताया ये,
किसी ने अपने ख्वाबों की लिफ्ट में क्या बैठा दिया,
चढ़ता ही गया मैं,
दूसरों के ख्वाबों की ऊंचाई से मेरे ख्वाब की मंजिल धुंधली दिख तो रही है,
पर सुकून की दहलीज तो वहीँ है,
जो पार नहीं कर सका,
मेरे भी थे कुछ ख्वाब,
पता ही नहीं चला कि ये थे ख्वाब,
© अभि "एक रहस्य"