...

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ठंडी रात
2122 1212 22
ठंडी रातों में तेरी याद का ग़म
कैसे भूलूँगा मुलाकात का ग़म

रतजगा खा रहा है ऊपर से
छोटे दिन हैं तो लंबी रात का ग़म

धुंध में छिप गए मरासिम तो,
घट रही तुझमें ख़्वाहिशात का ग़म

गिरना पत्तो का बताता है मुझे
क्यों है बिखरें से इसी बात का ग़म

ठंडी बेदर्द सी हवाओं में,,
हिज़्र के ख़ुश्क तज़रबात का ग़म,,
*विकास जैन व्याकुल*
(हिज़्र-जुदाई)
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