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वर्ण व्यवस्था:-
धर्म,मंत्र का ज्ञान लिए,
दिखाता समाज को सही राह, सदियों से ,पकड़े कस कर ज्ञान,विद्या की डोर।
समाज का प्रथम मुख़ ब्राह्मण कहलाया।
संतों,पूर्वजों,की विरासत को जब- जब पड़ी रक्षा के लिए त्राहिमाम।
आगे हर बार ढाल बनकर आए क्षत्रिय।
लेकर अपने साथ अर्थ का विज्ञान ,धन, धान्य से व्यवस्था करता तीसरा मुख समाज का कहलाया वैश्य।
सेवा जिसने दिन रात करी।
सेवा से विधाता से सबसे पहले जुड़ा।
अधिकारों को पाने में जिसने धीरज सबसे ज्यादा धरा।
वो समाज का चौथा मुख शूद्र कहलाया।
आपस में ये बैर कैसा ,
सबने आहूत किया स्वयं को।
काल बदलता,समय बदलता ।
बदली आवश्यकताएं जीवन की।
सबका हक़ है उन्नत होना।
अब,अब जरूरी है आगे बढ़ना।।
समीक्षा द्विवेदी
© शब्दार्थ📝
दिखाता समाज को सही राह, सदियों से ,पकड़े कस कर ज्ञान,विद्या की डोर।
समाज का प्रथम मुख़ ब्राह्मण कहलाया।
संतों,पूर्वजों,की विरासत को जब- जब पड़ी रक्षा के लिए त्राहिमाम।
आगे हर बार ढाल बनकर आए क्षत्रिय।
लेकर अपने साथ अर्थ का विज्ञान ,धन, धान्य से व्यवस्था करता तीसरा मुख समाज का कहलाया वैश्य।
सेवा जिसने दिन रात करी।
सेवा से विधाता से सबसे पहले जुड़ा।
अधिकारों को पाने में जिसने धीरज सबसे ज्यादा धरा।
वो समाज का चौथा मुख शूद्र कहलाया।
आपस में ये बैर कैसा ,
सबने आहूत किया स्वयं को।
काल बदलता,समय बदलता ।
बदली आवश्यकताएं जीवन की।
सबका हक़ है उन्नत होना।
अब,अब जरूरी है आगे बढ़ना।।
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