...

15 views

कैसे रोकूं खुद को
कैसे रोकूं खुद को लिखने से,
तेरी यादें निकल जाती हैं हवा सी छू कर,,
अब तो हाल दीवानों सा
और माहौल शायराना है इस कदर ,
कि मेरी नब्ज़ रूके तो मेरी क़लम रुके,,
जब भी वक़्त मिलता है ,
हाथ कागज क़लम उठा लेते हैं,,
रूह पर लगे जख्मो के लिए,
स्याही की मरहम उठा लेते हैं,,
दिल और दिमाग दोनों,
बस एक ही काम करते हैं ,,
इस कायनात में कुछ,
चुनिन्दा लफ्ज़ो को ढूंढने निकलते हैं ,,
भला क्या वजूद शायर का,
वो ना लिखे अगर,,
अब तो हाल दीवानों सा
और माहौल शायराना है इस कदर ,
कि मेरी नब्ज़ रूके तो मेरी क़लम रुके,,
© All Rights Reserved