कैसे रोकूं खुद को
कैसे रोकूं खुद को लिखने से,
तेरी यादें निकल जाती हैं हवा सी छू कर,,
अब तो हाल दीवानों सा
और माहौल शायराना है इस कदर ,
कि मेरी नब्ज़ रूके तो मेरी क़लम रुके,,
जब भी वक़्त मिलता है ,
हाथ कागज क़लम उठा...
तेरी यादें निकल जाती हैं हवा सी छू कर,,
अब तो हाल दीवानों सा
और माहौल शायराना है इस कदर ,
कि मेरी नब्ज़ रूके तो मेरी क़लम रुके,,
जब भी वक़्त मिलता है ,
हाथ कागज क़लम उठा...