...

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रिश्तें
वक़्त के साथ साथ हर रिश्तें
अब बदलने लगे हैं
अपना कहने वालों के दिलों में भी
नफरत के बीज पनपने लगे हैं,,,!!

अपनेपन के नही, तेरे मेरे के भाव
अब हर रिश्ते में दिखने लगे हैं
अपने ही अक्सर अपनों को
अब परखने लगे हैं,,,,!!

सामने से बातों मे होती है बड़ी मिठास
पीछे से कड़वाहट घोलने लगे हैं
रिश्तों को भी अमीरी गरीबी की
तराजू से तोलने लगे हैं,,,!!

खून के रिश्तों से भी ज्यादा अब
अंजान रिश्तें अपने होने लगे हैं
बैठे होते है सब अपनो के साथ में
जुबां से सब मौन होने लगे हैं,,,,!!

जीवन के सफर पर चलते चलते सभी
अपने अब पीछे कहीं छूटने लगे हैं
रिश्तों की डोर हो चुकी है बड़ी कमजोर
छोटी सी बात में रिश्तें टूटने लगे हैं,,,!!

© Himanshu Singh