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"गरीब हूँ तो जानता हूँ कि गरीबी क्या होती है!"
जो चीज़ आसान लगे वही मेरे लिए कठिनतम होती है,
मेरे घर में औरतें जरूरतों के लिए अपने जेवर खोती हैं,
गरीब हूँ तो जानता हूँ कि गरीबी क्या होती है!
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आदत हो चुकी है अब खाली पेट सोने कि,
मिहनत से कमाई हुई एक रोटी भी परिवार को सौंप देने की!
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महल में रहके क्या जानो ऐहमियत झोपड़े की,
बारिश में टपकती छत सिखा गयी झोपड़े का मोल भी!
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मेरा परिवार हर चीज को तिल-तिल तरसता है,
फिर आँखों से निहार के ही मन भर लेता है!
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हर त्योहार हमारे लिए सूने ही जाते हैं,
इन काली रातों के साथ तन्हाई और लाचारी भी आते हैं!
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मेरे किस काम की,
ये मायावी दुनिया; चैन की नींद सोती है,
गरीब हूँ तो जानता हूँ कि गरीबी क्या होती है!
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लाचारी है, तन्हाई है और दर्द भी है,
पर इन काली रातों में भी नैना लेती ढूँढ मोती हैं,
यात्नाओं में भी ईमान और इमानदारी भी है,
गरीब हूँ तो जानता हूँ कि गरीबी क्या होती है!
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भाग है ये मेरा जानता हूँ मैं,
अभिशाप नहीं, कर्म मानता हूँ मै,
फिर भी,
रैना से भोर मेरी, तखय्युल में ही होती है,
गरीब हूँ तो जानता हूँ कि गरीबी क्या होती है!!