...

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अस्तित्व
यूं इस तरह
कुछ बातों का होना हर वक्त,
दिमाग़ की गहराइयों में
बीते हुए कल के साथ,
जो प्रश्नचिन्ह लगाते हैं
आज के अस्तित्व पर..

झिंझोड़ती रहती हैं अंदर से
कुछ अपरिचित मंज़िलें,
जिनकी न शुरुआत का पता है
ना ही अंत का,
या शुरुआत या अंत हैं भी या नहीं
ये भी नहीं मालूम..

ना जाने कितने कोने
उगते गए हैं
अंतस की दीवारों पर..
जैसे हर कोना फाड़ने पर
दो नए कोने बन जाते हैं,
वैसे हर सवाल का जवाब
नए सवाल खड़े कर देता है..

सवाल तोड़ते हैं हौसला
बातें चीरती है बहाव
हर ठोकर गिराती है थोड़ा और
हर कोना चुभता है सोच में..
पीछा करता अतीत
काटने दौड़ता है..
खुरदुरा होता जाता है मन
छिलती जाती है आत्मा..

मंज़िलें आज भी वही हैं..
रास्ते बने ही नहीं
जहां तक पहुंचने के,
कोई चला ही नहीं कभी
ना चाही ऐसी मंज़िल
ना सोचा ऐसा सफ़र..

अब ख़ुद ही
बनानी होंगी पगडंडियां
खींचने होने नए रास्ते
ज़िंदगी के नक्शे पर
चिन्हित करना होगा
अस्तित्व...



© आद्या