ठहरा क्युं है ?
कुछ टूटता है, कुछ बिखरता है,
हम ही जानते हैं हम पर क्या बीतता है।
कोई आता है, कुछ क्षण रुकता है,
फिर कुछ कहे बिना चला जाता है।
जानेवाले को रोक नहीं सकते हम,
पर उसे जाते हुए देख भी नहीं सकते।
कुछ-कुछ अंदर बिखर जाता है,
लाख करो फिर कोशिश जुड़ नहीं पाता है।
वही सुबह है, वही शामें हैं,...
हम ही जानते हैं हम पर क्या बीतता है।
कोई आता है, कुछ क्षण रुकता है,
फिर कुछ कहे बिना चला जाता है।
जानेवाले को रोक नहीं सकते हम,
पर उसे जाते हुए देख भी नहीं सकते।
कुछ-कुछ अंदर बिखर जाता है,
लाख करो फिर कोशिश जुड़ नहीं पाता है।
वही सुबह है, वही शामें हैं,...