सबब
मेरे लम्बे इस सफ़र का सबब क्या है,
जो कुछ और था पहले तो अब क्या है.
ज़माना ठहरा रहेगा, ये फ़ितरत है उसकी,
गर हंसे वो चलने वालों पे तो ग़ज़ब क्या है.
जहां सुलझाने हो मसले अदब-ओ-अमन से,
वहां ज़ुबां चले हथियारों-सी तो अदब क्या है.
...
जो कुछ और था पहले तो अब क्या है.
ज़माना ठहरा रहेगा, ये फ़ितरत है उसकी,
गर हंसे वो चलने वालों पे तो ग़ज़ब क्या है.
जहां सुलझाने हो मसले अदब-ओ-अमन से,
वहां ज़ुबां चले हथियारों-सी तो अदब क्या है.
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