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उलझन
एक बात पूंछू बाताओगे क्या,
हमे अपनी ख्वाबो में बुलाओगे क्या।
इतनी प्यारी-प्यारी बाते कैसे कर लेते हो,
हमे भी अपनी बातो में उलझाओगे क्या।
खमोश लफ्जो में क्या गाते है,
कितनी गजब आपकी हर जज्बाते है।
कंहू कैसे लफ्ज कुछ कह नही पाता,
बीता भोर, रैन दिल चैन नही पाता।
जो आंऊ कभी सामने
आंखो में पढ पाओगे क्या,
हमारी खमोशी को तुम
समझ पाओगे क्या।
एक बात पूछु बाताओगे क्या,
हमारी ख्वाबो को अपना बना पाओगे क्या।
© Savitri..
हमे अपनी ख्वाबो में बुलाओगे क्या।
इतनी प्यारी-प्यारी बाते कैसे कर लेते हो,
हमे भी अपनी बातो में उलझाओगे क्या।
खमोश लफ्जो में क्या गाते है,
कितनी गजब आपकी हर जज्बाते है।
कंहू कैसे लफ्ज कुछ कह नही पाता,
बीता भोर, रैन दिल चैन नही पाता।
जो आंऊ कभी सामने
आंखो में पढ पाओगे क्या,
हमारी खमोशी को तुम
समझ पाओगे क्या।
एक बात पूछु बाताओगे क्या,
हमारी ख्वाबो को अपना बना पाओगे क्या।
© Savitri..
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