...

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वोह बात नहीं
अचानक ये कैसी खामोशी है इस फिजा में।
हरकत तो दिखाई देती है पर बात नहीं।

पहले तो फूलों से भी राब्ता होते थे,
चमन में फूल अब भी है लेकिन वो सौगात नहीं।

घुट रहे है शीशों में कैद हम,
ना जाने क्यों रूठे हुए से दिखते है।
दिल धड़कता तो मालूम होता है,
पर धड़कने में वोह बात नहीं।

तनहाई की गोद में सोना
आदत है या मजबूरी,
अकेला मै भी हूं,अकेला तू भी है,
ये तो आदम की जात नहीं।

© STOIC