...

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ज़िंदगी का मतलब
न होती ये ज़िन्दगी, न उसका मुब्तला होता,
न होते हम खुश-फ़हम, न जीने का गिला होता.

न मानते कोई दायरे, न जुड़ते हम किसी से,
कोई बेजां-सी शय होते, न दर्द का सिलसिला होता.

लगाने न होते शजर कहीं, न पोसना होता उन्हें,
न फ़िक्र होती बाग़ की, न फूलों का हौसला होता.

न तोहमतें न मोहब्बतें, न मुसीबतें न हिकायतें,
होता वो बे-रंग ही, जो ज़ीस्त का काफ़िला होता.

न होती दरकार किसी को खुशियां देने की हमें,
न हयात-ए-फ़ानी में किसी और का दाख़िला होता.

रिश्ते...