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मनहूस
कुछ लोग होते हैं एकदम मनहूस, जलने वाले, बुराई करने वाले। अच्छे की बुराई, बुरे की और बुराई।
आप प्रसन्न हो, वो दिख गए।
सदा की तरह बताने लगे
आपमें कितनी बुराई है
आप जो कर रहें हैं वो कितना बुरा है
आप असफल थे, हैं, रहेंगे


मेरा निजी अनुभव है।
जमाने को तो बदल नहीं सकते सो खुद को संभाल लेते हैं। लोचा कहाँ नहीं है। मिथिला के मधुबनी के छोटे से गांव में बैलगाड़ी पर जन्मा। घर में मंझला हूँ, तो बकरी के तेसर कहा गया। गांव से शहर समस्तीपुर जा बसा, तो वहाँ लोग गौवां गंवार देहाती कहने लगे। गंगा के पार पटना में बसा तो लोग कहते मैथिल। ताना मारते कि मैथिल और नाग में पहले मैथिल को कुचलना पड़ता है। बैंगलोर गया तो बिहारी के नाम पर ताना। US, Europe में भारतीय, ब्राउन का ताना मिला। कभी दिल पे नहीं लिया। हर जगह कुछ अच्छे लोग मिले और घनिष्ट मित्रता हो गई। दुनिया में फूल के साथ काँटे, उजाला के साथ अंधकार, जीवन के साथ देहावसान, सुख के साथ दुःख, अच्छे लोग के साथ थोड़े कम अच्छे लोग Buy One Get One Free है। इग्नोर करे वैसे महारथियों को। लगे रहें मन से। सफलता जरूर मिलेगी।

उसी संदर्भ में प्रस्तुत है ये रचना

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उपेक्षा
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लोग पग-पग पर छले,
नजर लगे जब-जब मिले
तिल-तिल कर सदा जले,
बिन बात ही कालिख मले
दिल जब परेशान हो, होता नहीं कोई काम है।

ज़माने के तानों का क्या,
तीखे वाक्-वाणों का क्या
लोगों की बातों का क्या,
श्वानों की बारातों का क्या?
यही उनकी जात है, बस भौंकना ही काम है।

सामने कहे बड़ा होनहार,
पीठ पीछे सौ विकार
परवाह क्या उन असुरों की,
दर्द देख कर दूसरों की
मुस्कुराना शौक़ है, टांग अड़ाना काम है?

उपेक्षा से पूछते वो
क्या तुझमें है सिंग पूंछ ?
विनम्रता रूपी दुम कही हिला लिया, दबंगता का सिंग कभी दिखा दिया
इनके सदुपयोग से, होता हरेक काम है।

अमानुषों की भीड़ में,
भलेमानुस भी मिले
निःस्वार्थ हर मदद की,
स्नेह दिया, संग चले
स्मरण करूँ उन्हें सदा, ऋणी रहूँ ये काम है।

मस्त सदा व्यस्त रहूँ,
खुश रहूँ, हँसता रहूँ
कभी न मैं बुरा बनूँ,
बुरे जो उन्हें क्षमा करुँ
पर नाम उनका याद रख, सावधान रहना काम है।

क्रोध आया उबल गया मैं,
शांत हुआ संभल गया मैं
ठोकर से मैं गिरा, उठा,
ऐसा ही है जग सदा
सब पे हँसना धर्म है, सब को डंसना काम है।

ह्रदय फटा तो रो लिया,
थक गया तो सो लिया
जागा जब फिर चल दिया,
सुख भी जिया दुःख भी जिया
जिंदगी एक सफ़र, रुकने का न कोई काम है।

सोचता हूँ कहा से आया,
किसने मुझ को बनाया
मंज़िल कहाँ, जाना कहाँ,
कब तक हूँ, मैं कौन हूँ
क्या मेरा नाम है, क्या यहाँ मेरा काम है?

दूर गगन से मैं आया,
विधाता ने बनाया,
जाऊँ जहाँ मंज़िल वहाँ,
क्षणिक जीवन का पथिक मैं,
चल मेरा नाम है, चलता रहूँ यही काम है।

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