...

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तेरी मीरा बनु
धरा के उस छोर पर तुम हो प्रिय और इस छोर पे मैं मंद मुस्का रही|

गगन की तारिकाओं को गीन जो लिए, मेरे प्रेम को उस दिन समझ पाओगे|

धरा के उस छोर पे.....

ऑऺंखों ने तुम को ना देखा मगर मन की आंगन तुम्ही को हैं अर्पण किये|

धरा के उस छोर पे.....

साथ चलने की आशा नहीं मगर साथ निभाने से कभी भी ना कतरायेंगे|

धरा के उस छोर पे.....

दायित्वों से बोझिल है कंधे मगर तुम झूठी तसल्ली दिया तो करो|

धरा के उस छोर पे.....

रीत संसार का प्रित जाने नहीं, हाँ मैं जानु मगर मैं ना मानु इसे|

धरा के उस छोर पे.....

"राधिका" से "रुक्मिणी" बन ना सकी, कोई गम नहीं तेरी "मीरा" बनु|

धरा के उस छोर पर तुम हो प्रिय और इस छोर पे मैं शरमा रही||
© Pakhi Vaibhav