...

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ग़ज़ल...
काश! मेरे हाथों में, तेरे नाम की लकीर होती
मैं तेरा राँझा होता, और बस तू मेरी हीर होती

तेरे सारे दर्द-ओ-ग़म, मैं अपने ऊपर ले लेता
चोट जो तुझको लगती, तो मुझको पीर होती

एक पल भी तुमसे जुदा होके, जीना ना पड़े
तेरे साथ जिंदगी हो, ऐसी मेरी तक़दीर होती

इस दुनिया से दूर, एक नई दुनिया बसा लेते
दो दिलों की वो दुनिया, कितनी अमीर होती

एक तेरे संग से, हों हर शब बहारों के मौसम
ख्वाबों-सी हसीन ये जिंदगी, तेरी 'नीर' होती।

नीर कुमार 'निर्मोही'