...

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जिम्मेदारियाँ
हो सकता है, तेरे समझ से… रहे होंगे हम कोषो मिलो दूर!
पर तेरे यकीन से, नहीं रख सकते… कभी कोई फासला;
हो सकता है, तेरे नखरों से… होंगे नशे में कई दिवाने चूर!
पर सिवाए तेरे फिक्र के, उभारे नहीं मनमें... हम कभी कोई मसला।

हाँ इस मसरूफ भरी जिंदगी में, हो गए हैं हम थोड़े मशगूल;
पर इसका ये मतलब नहीं है कि, करते नहीं हैं हम तुम्हें कुबूल।
फर्ज निभाते निभाते, बनादिया हमने अपनी रंगीन लम्हों को कोरा;
आगे बढ़ने के लिए थके राही को, तुझे ही देना होगा हौंसला थोड़ा।

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© सराफ़त द उम्मीदभरे क़लाम