...

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जीवन धारा
बहुत गहरी नदिया है ये जीवन की धारा
खर पतवार मिले तब कश्ती को पुकारा
सफर अधूरा तय हुआ ना मिला किनारा
मिलते बिछड़ते लोग मन भरम का मारा
रिश्ते बनते बिगड़ते सुख दुःख का सहारा
कर्मफल भोग भोगने में ये जीवन गुजारा
नेक कमाई ईश्वर भरोसे चले चक़ बेचारा
काल गति सोह मति संग करो भव पारा