...

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दोस्ती था या प्यार ?
पता नहीं वो एहसास दोस्ती का था या फिर प्यार का
पर जो भी था बहुत खास था
तुम्हे देख कर सामने दिल को सुकून मिलता था
तुम्हे खुश देख कर मन को शांति मिलती थी
तुम्हारे लिए कुछ करने का मौका मिले तो
बस सातवे आसमान पर होती थी
तुम्हे दर्द में देख दिल बेचैन रहता था
तुम्हे मनाने का कुछ तकलीफ दूर करने का मन करता था
तुम अगर सामने से बात करलो तो पूरा दिन खुशी खुशी निकल जाती थी
तुम्हारे स्पर्श में कुछ था जो बड़ा सुकून देता था
यूं तो कोई मेरे पास आए यह मुझे मंजूर नहीं था
पर अनजाने में कब और कैसे मेरे कदम तुम्हारे और बढ़ने लगे थे पता नहीं
कितनी भी कोशिश करती थी तुमसे ना मिलु
तुम्हारी परवाह न करूं फिर भी हो नहीं पाया
न जाने यह कैसा एहसास था जो आज भी समझ नहीं पा रहीं हूं
तुम्हे भुला नहीं पा रहीं हूं
जानती हूं अब मेरा कोई हक नहीं तुमपे
तुम बहुत आगे निकल गए हो
और मैं कहीं पीछे छुट गई हूं
तुम्हे न तब मेरी जरूरत थी और न अब है और न कल होगी
पता नहीं जिन्दगी किस और मुड़ रही है
क्या लिखा है किस्मत है
पर बहुत डर सा लग रहा है अकेले आगे बढ़ने में
एक पल नहीं बीतता तुम्हे याद किए बिना
यह जान कर भी कि तुम कभी मेरे हो नहीं सकते
शायद मैं आज भी प्यार करती हूं तुमसे
जानती हूं मेरा कोई वजूद नहीं तुम्हारे जिन्दगी में
पर आज भी वो दोस्ती वाला प्यार या प्यार वाली दोस्ती जिंदा है
पर पता नहीं वो एहसास क्या था दोस्ती या प्यार ।।।


© Disha