...

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जलती जमीं और पशु पक्षी
तपती दुपहरी जलती जमीं
हे नन्हे परिंदे तुझे ठोर नहीं
जंगल काटे घर भी छीने
जिनमें रहते हम, वे तांके

जल जीवन सब छीना उनका
अब बालकनी में आना उनका
आते ही हम ताड़े उनकों
कठिन हुआ जी पाना उनका

रवि रूठे अंगारे बिखरे
बाहर न निकले नित रे
मुरझाये मुंह पक्षी आते
वे प्यासे होते कुपित रे


© जितेन्द्र कुमार 'सरकार'