...

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ग़ज़ल
तुझे छोड़कर मुझको जाना नहीं है
समुंदर है गहरा किनारा नहीं है
तेरे इश्क़ ने कर दिया है निकम्मा
सिवा इश्क़ के कुछ भी आता नहीं है

नहीं होती ग़ाफ़िल कभी इतनी भी ये
कभी ज़िंदगी को सँवारा नहीं है
परेशाँ रहा उम्र भर के लिए वो
गुमाँ सर से जिसने उतारा नहीं है

मुझे ख़ल्वतों में ही रहने का है शौक़
मुझे शोर दुनिया का भाता नहीं है

लगाऊँ मैं चक्कर तेरी गलियों के सौ
मेरा इतना भी दिल अवारा नहीं है

न ही लेके जाता है मुझको तू होटल
सिनेमा भी मुझको दिखाता नहीं है
'सफ़र' क्यों है बोरिंग तू इतना बता दे
मुझे तू ग़ज़ल भी सुनाता नहीं है
© -प्रेरित 'सफ़र'