...

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रक्त शिराएँ…
रक्त शिराएँ…

उस रात
जब मैं…
मय के नशे में चूर था
और कर रहा था बातें
अपने दोस्त से
उसी के बार में …

याद है
अचानक से तुम आईं थीं और
बैठ गई थी
मेरे बहुत क़रीब

इतना क़रीब
की मैं…महसूस कर पा रहा था
तुम्हारी साँसों की आवाज़
और तुम्हारे तेज धड़कते हुए
दिल धड़कनों को

जानती हो
उस देर रात

जब दो तीन पेग हो जाने के बाद
तुमने
छुआ था मेरी बाँहों पर
उभरती हुई
उन हरी रक्त शिराओं को
तब मेरा रोम रोम
मजबूर हो गया था सिहर उठने को

आज भी
जब मैं…याद करता हूँ वो रात
तो उभर आती है
मिरै ज़हन में
तुम्हारी वो मदहोश सी धुंधली तस्वीर

जो उस रात
बस कर रह गई थी कहीं
इस ज़हन में
किसी अधूरी हसरत की तरह…

#हसरतों_के_दाग
© theglassmates_quote