...

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आस्था सपनो की !
#प्रतिक्षा
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
मन ना जाने क्यों हैं तंग,
लालसा के बज रहे मृदंग,
ना जाने उमर का ये कौन सा रंग ,
अब तो हर पाठ हुआ भंग ,
बावला हुआ ये मन भूल गया जीने के सारे ढंग,
ये ना जाने उमर कौनसा रंग ,
अपनाया है जुनूनी ढंग ,
पिया है सपनो का भंग ,
लगा लिया है चाहत का रंग,
मन में बाजे तन में बाजे उमंग के मृदंग ,

स्थिर तन चंचल मन ,
अडिग प्रतीक्षा की लग्न ,
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