...

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बचपन
कहीं चिड़ियों की चहचहाट कहीं गिलहरियों का शोर था
ये वक्त वो नही है,वो वक्त ही कुछ और था

खाली रहती थी जेबें तब बनते थे हम राजा
नौकर भी हम ही होते थे, करते थे काम साझा
मरते से दिन निकलता अब तब होता एक भोर था
ये वक्त वो नहीं है, वो वक्त ही कुछ और था


कॉलर उठा कर चलते थे, साइकिल भी लगती थी गाड़ी
बनके खिलाड़ी रहते थे पर थे हम पूरे अनाड़ी
पागल से फिरते थे यार, वो दोस्ती का दौर था
ये वक्त वो नहीं है, वो वक्त ही कुछ और था


चमचम सी दिखती दुनिया, रोगी सी बनती दुनिया
मशगूल है सब खुद में, तिल तिल सी मरती दुनिया
कब बीत गया बचपन वो जिसमें मैं अबोध सा किशोर था
ये वक्त वो नहीं है, वो वक्त ही कुछ और था


पाबंदियां अब लग गई, थोड़े से क्या हम बड़ गए
खुद को बनाने में नही पता, क्या क्या हम तज गए
कल देख कर वो मिट्टी में बच्चा मन मेरा बहुत विभोर था
ये वक्त वो नहीं है, वो वक्त ही कुछ और था