...

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मुझें अंजान रहने दो
मेरी कलम से जो मेरी पहचान है
वो पहचान रहने दो
मैं अनजान हूँ मुझें तुम अनजान रहने दो
चली हूँ जिस राह पर तन्हाई की तलाश में
उस राह को तुम सुनसान रहने दो
दो गज जमीन के निचे ढूढ़ा है घोंसला
सब ले लो मुझसें बस वो मकान रहने दो
सुनाएँगे कई लोग तुम्हे किस्से कहानियाँ मेरी
हक़ है उनको कहने दो
मैंने चुना है दर्द को जो अपना हमसफ़र
दूर रहो, इसे मुझें खुद सहने दो
मेरे शब्द गर पड़े तुम्हारी नज़र के सामने
परेशान ना हो, अपने चेहरे पर मुस्कान रहने दो
मैं अंजान हूँ मुझें तुम अनजान रहने दो
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