अनकहे अल्फ़ाज़
सुनसान रातों का फलसफा और एक तेरा न मिलना
बता मेरे नसीब में और क्या - क्या न था
तू सोती रही, मैं अंधेरों में जागता रहा,
बता इंसानियत की फितरत का तमाशा और कब तक मुझसे था जुड़ा,
बुनियाद टूटी इस कदर, कि जहन्नुम से निकला और मैं कतरा बन गिरा,
ओ! मेरे उन गुज़रे ज़माने की एहमियत, तेरा ज़लज़ला उठा,
यहां मैं पानी बन गिरा,
हर जबां कहती थी इश्क की, तू फरेब नहीं,
समंदर का अमृत बन मुझमें समा,
किस ज़ुल्मो सितम के ढाए अश्क थे वो बोल, जो मैं भीगा भी,
फिर भी सूखा ही रहा।।
© Pooja Gautam
बता मेरे नसीब में और क्या - क्या न था
तू सोती रही, मैं अंधेरों में जागता रहा,
बता इंसानियत की फितरत का तमाशा और कब तक मुझसे था जुड़ा,
बुनियाद टूटी इस कदर, कि जहन्नुम से निकला और मैं कतरा बन गिरा,
ओ! मेरे उन गुज़रे ज़माने की एहमियत, तेरा ज़लज़ला उठा,
यहां मैं पानी बन गिरा,
हर जबां कहती थी इश्क की, तू फरेब नहीं,
समंदर का अमृत बन मुझमें समा,
किस ज़ुल्मो सितम के ढाए अश्क थे वो बोल, जो मैं भीगा भी,
फिर भी सूखा ही रहा।।
© Pooja Gautam
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