...

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बुझती उम्मीदों का सफर
जिन उम्मीदों से उम्मीद जाती रही,
उन उम्मीदों से उम्मीद रखने से फ़ायदा क्या है?
जब ज़िंदगी जीने का सलीका भूलता ही गया,
तो साँसों की माला पिरो लेने का क़ायदा क्या है?...