/ग़ज़ल :और उस कारगर का हुनर छिन गया/
२१२ २१२ २१२ २१२
इक चहकता सुहाना सफ़र छिन गया
मंजिलें लुट गईं राहबर छिन गया
कहने को पेड़ काटा गया है मगर
चहचहाते परिंदों का घर छिन गया
ये तो बेटी है पढ़ कर ये क्या पाएगी...
इक चहकता सुहाना सफ़र छिन गया
मंजिलें लुट गईं राहबर छिन गया
कहने को पेड़ काटा गया है मगर
चहचहाते परिंदों का घर छिन गया
ये तो बेटी है पढ़ कर ये क्या पाएगी...