...

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होसलो की चाह
#डगमगाए कदम पर संभलते गए
हिम्मत को अपनी और भी समेटते गए

उलझने आई, लोग और भी उलझाते गए
#चक्रव्यूह के हर द्वार तोड़ना सीखते गए

जीवन की #दृश्यता कभी जो धुंधली हुई
मन के चिराग को और रोशन करते गए

दुखों के #बादलों ने जब भी #आवेशित किया
उम्मीदों की बारिश में खुद को भिगोते गए

विफलता #चुनौतियां दे ललकारती रही
जीवन के युद्ध के मैदान में हम डटे रहे

दुखों के मेले में इधर उधर भटकते रहे
सुख के तारों को समेटने की चाह रखते गए

© ऋत्विजा