उलझनें
हर खुशफ़हमियों से अब हमें, मुँह मोड़ना होगा।
मुझे वह बिंधते हैं ऐसे, कि बन्धन तोड़ना होगा।।
ये रंगत रिश्तों कि जो मुझे, कल तक अज़ीज़ थे।
लगाए शक्ल पर धब्बे, कि दामन छोड़ना होगा।।
बन्द आँखों से कब तक, भरोसा करते रहेंगे हम।
खोल कर अपने आँखों को, पलड़ा तोलना होगा।।
मैं देखा करता था अक्सर, मगर था बोलता नहीं।...
मुझे वह बिंधते हैं ऐसे, कि बन्धन तोड़ना होगा।।
ये रंगत रिश्तों कि जो मुझे, कल तक अज़ीज़ थे।
लगाए शक्ल पर धब्बे, कि दामन छोड़ना होगा।।
बन्द आँखों से कब तक, भरोसा करते रहेंगे हम।
खोल कर अपने आँखों को, पलड़ा तोलना होगा।।
मैं देखा करता था अक्सर, मगर था बोलता नहीं।...