...

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"...और ये शहर कलकत्ता!"
तुम....मैं..... और ये शहर कलकत्ता
अपनी अक्षांश रेखा से
दरक गए हो जैसे
मेरे ह्रदय के भूमध्य में विषुवत वृत सी तुम
मेरे संपूर्ण जीवन को दोनों गोलार्धों में
आवंटित किए जाती हो।
© AkaSSH_Ydv_aqs